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सहयोग
सहयोग : यह जानते हुए कि सहायता कैसे की जाये, सहायता देने के लिए हमेशा तैयार रहना ।
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सहयोग का यह अर्थ नहीं है कि सभी उस व्यक्ति की इच्छा पूरी करें जो उसकी मांग करता है । सच्चा सहयोग है, 'परम प्रभु की इच्छा' को अभिव्यक्त ओर चरितार्थ करने के लिए सभी व्यक्तिगत प्रयासों का अहंकारविहीन ऐक्य ।
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हमें प्रतियोगिता और संघर्ष के स्थान पर सहयोग और भ्रातृभाव की स्थापना करनी चाहिये । २ जुलाई, १९५४
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प्रतिद्वंद्विता और प्रतियोगिता के भाव के स्थान पर सहयोग और आपसी सहमति की सद्भावना रखो ।
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जब चीजें उल्टी होने लगें तभी अपनी सद्भावना और सच्चे सहयोग का भाव दिखाने का उत्तम अवसर होता है ।
सद्भावना
वस्तुत: सभी चीजों में छिपी हुई सद्भावना अपने-आपको सभी स्थानों पर उस व्यक्ति के आगे प्रकट करती है जो अपनी चेतना में सद्भावना लिये रहता है ।
२०५ यह अनुभव करने का रचनात्मक तरीका है जो सीधे 'भविष्य' की ओर ले जाता है ।
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तुम्हें अपने हृदय में निरन्तर सद्भावना और प्रेम बनाये रखना चाहिये और उन्हें सभी के ऊपर शान्ति और समता के साथ प्रवाहित होने देना चाहिये । १६ दिसम्बर, १९६६
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सभी के प्रति ओर सभी की ओर से सद्भावना शान्ति ओर सामञ्जस्य की नींव है । १४ अगस्त, १९६१
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सद्भावना : देखने में विनम्र, वह कभी शोर नहीं मचाती पर सदा उपयोगी होने के लिए तैयार रहती है ।
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मानसिक सद्भावना थोड़ा दिखावा करना पसन्द करती है पर है बहुत उपयोगी ।
शुभचिन्ता
शुभचिन्ता ध्यान खींचे बिना जीवन को सुरभित बना देती है ।
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भगवान् से प्रेम करने और धरती पर 'उनकी' सेवा करने का सबसे अच्छा तरीका है अथक, स्पष्टदर्शी और व्यापक शुभ-चिन्ता जो सभी
२०६ व्यक्तिगत प्रतिक्रियाओं से मुक्त हो ।
मेरा मतलब है विचारों और वाणी में सच्ची, निष्कपट और सहज शुभ चिन्ता, कामों में वह तथाकथित शुभचिन्ता नहीं जिसके साथ दया दिखाने वाली श्रेष्ठता का भयंकर भाव होता है जो मुख्य रूप से मानव दर्प के लिए मंच का काम देता है ।
सहिष्णुता
सहिष्णुता बड़प्पन के भाव से भरी होती है, उसके स्थान पर होनी चाहिये पूरी सहानुभूति ।
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सहिष्णुता बुद्धिमत्ता की ओर मात्र पहला कदम है ।
सह जाने की आवश्यकता अनुभव करने का मतलब है कि पसन्दें अभी भी विद्यमान हैं ।
जो भागवत चेतना में निवास करता है वह सभी चीजों को पूर्ण समचित्तता के साथ देखता है । ९ अगस्त, १९६९
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